वो चिंता में डूबा
उकडू मुकडू बैठा था
अचानक खडा हो गया
बनियान की जेब से
खैनी की पुडिया निकाला
खैनी को हथेली पर रख
ढंग से घिसा
चुना मिलाया
चुटकी में भर
जब उसने आसमान को देखते हुए
खैनी को होठों के बीच में
दबाया और बुदबुदाया
चलो देखते है क्या होगा
फिर चिंता कहा
केवल हौसला
Tuesday, January 10, 2012
Sunday, August 21, 2011
एक बुनियादी सवाल
एक बुनियादी सवाल - इस देश में ऐसी कौन सी सुविधा है जो कि सर्व सुलभ हो, आखिरी आदमी तक उसकी पहुच हो ?
- कपड़ा
- भोजन
- मकान
- शुद्ध पेय जल
- अस्पताल
- स्कूल
- रोज़गार
- बैंक
- सड़क
- रेलगाड़ी
- बस
- उर्वरक
- बीज
इन सुविधाओं को सर्वसुलभ किये बगैर क्या यह देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकता है ?
Wednesday, August 17, 2011
ख्वाब देख ख्वाबों में ही चूर था /
आजकल एक आस सी रहने लगी है मन में, कि एक ऐसा दिन आएगा जिसका इंतज़ार युगों से है / ऐसा प्रतीत हो रहा है कि परिवर्तन बस चौखट पर ही है, लेकिन यह भ्रम है मेरा / परिवर्तन रुपी मृग मरीचिका, जिसका अस्तित्व अपने आप में ही नहीं है / हम सपना तो देख रहे है एक अच्छे कल की, लेकिन कल को अच्छा बनाने के लिए कर क्या रहे है ? अपनी जिंदगी को सरल बनाने और अपने आप को तमाम सुख के साधनों से मढने के अलांवा कर क्या रहे है / खुद को जगाते है और फिर मन बहलाकर सुलाते है / सपना क्रान्ति का देखते है लेकिन उसके लिए करते कुछ नहीं सिवाय बातों के / हर रोज आराम कुर्सी पर बिना चीनी के काली काफ़ी के साथ सोचते है कि अब समय आ गया है, अब और नहीं चुप रहना है / काफ़ी खतम होते ही यह विचार भी कही और चले जाते है, और फिर से निन्यान्बे का फेर / काफ़ी के मग में इतनी काफ़ी क्यों नहीं होती कि वो तब खतम हो जब विचार लक्ष्य बन चुका हो ? कल एक बड़ा मग खरीदूंगा फिर देखता हूँ कि, कैसे विचार बादलों की तरह उड जाते है बिना बरसे ?
Saturday, April 9, 2011
Thursday, September 23, 2010
कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय को अयोध्या मसाले पर का २४ सितम्बर को फैसला सुनाने पर रोक लगा दी है / सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर किया है /
मै समझ नहीं पा रहा हूँ रमेश चन्द्र के इस तर्क को कि, जिस मुद्दे पर विगत ६० वर्षों से मुक़दमा चल रहा है और कल फैसला सुनाया जाना था उसे रमेश चन्द्र समझौते और दंगे की दुहाई दे करके बार - बार फैसले को रोकने की कोशिश क्यों कर रहे है / रमेश चन्द्र को क्यों विश्वास है कि फैसले के बाद दंगे होंगे और स्थिति को पुलिस और अर्ध सैनिक बल नियंत्रित नहीं कर पायेंगे ? आखिर इसके पीछे उनके पास कौन से तर्क है या कौन से विश्वसनीय एजेंसी ने उन्हें सूचना मुहैया कराई है कि, फैसले के बाद दोनों में से किसी एक धर्म के लोग हिंसक हो उठेंगे ? फैसले के मद्देनज़र जितने बलों की अब तक तैनाती हो चुकी है उसे और कितने दिनों तक तैनात रहना पड़ेगा उसका खर्च कहा से किस मद से उठाया जाएगा ? कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा ? ६० वर्षों तक न्यायालय के बाहर कोई सुलह समझौता नहीं हुआ और ऍन फैसले की घड़ी में सुलह का राग अलापा जा रहा है / इस पूरे मसले पर हमारी राज्य सरकारे क्यों चुप्पी साधे हुए है, एक व्यक्ति कह रहा है कि फैसले के बाद स्थिति नियंत्रण के बाहर होगी और बिना किसी जाच के बिना किसी पड़ताल के सब लग गए हिंसा को रोकने के क्रम में /
मै समझ नहीं पा रहा हूँ रमेश चन्द्र के इस तर्क को कि, जिस मुद्दे पर विगत ६० वर्षों से मुक़दमा चल रहा है और कल फैसला सुनाया जाना था उसे रमेश चन्द्र समझौते और दंगे की दुहाई दे करके बार - बार फैसले को रोकने की कोशिश क्यों कर रहे है / रमेश चन्द्र को क्यों विश्वास है कि फैसले के बाद दंगे होंगे और स्थिति को पुलिस और अर्ध सैनिक बल नियंत्रित नहीं कर पायेंगे ? आखिर इसके पीछे उनके पास कौन से तर्क है या कौन से विश्वसनीय एजेंसी ने उन्हें सूचना मुहैया कराई है कि, फैसले के बाद दोनों में से किसी एक धर्म के लोग हिंसक हो उठेंगे ? फैसले के मद्देनज़र जितने बलों की अब तक तैनाती हो चुकी है उसे और कितने दिनों तक तैनात रहना पड़ेगा उसका खर्च कहा से किस मद से उठाया जाएगा ? कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा ? ६० वर्षों तक न्यायालय के बाहर कोई सुलह समझौता नहीं हुआ और ऍन फैसले की घड़ी में सुलह का राग अलापा जा रहा है / इस पूरे मसले पर हमारी राज्य सरकारे क्यों चुप्पी साधे हुए है, एक व्यक्ति कह रहा है कि फैसले के बाद स्थिति नियंत्रण के बाहर होगी और बिना किसी जाच के बिना किसी पड़ताल के सब लग गए हिंसा को रोकने के क्रम में /
हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /
२४ सितम्बर , इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला , दंगा होने के पूर्ण आसार , पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगतार शांति व्यवस्था बनाए रखने के इंतज़ाम में जुटे हुए है , सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोग शांति बनाए रखने के लिए लगे हुए है /
पिछले एक महीने से यह सब पढ़ - पढ़ कर मै तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि दरअसल कौन क्या कर रहा है और कौन क्या करना चाहता है / यह सब हव्वा क्यों खड़ा किया जा रहा है कि २४ सितम्बर के फैसले के बाद हिंसा होना एक तय सी बात है ? ऐसा लग रहा है एक पूर्वनियोजित हिंसा को जायज ठहराए जाने कि मुहीम में सब लोग लगे हुए है / क्या भारत के हिंदू और मुसलमान भाइयों को देश और देश की न्याय व्यवस्था पर तनिक भी विश्वास नहीं है / या फिर हमारे प्रशाशनिक अधिकारियों को हम भारतीयों पर तनिक भी विश्वास नहीं है / मुझे तो कम से कम यही समझ में आ रहा है कि कुछ मौकापरस्त हिंदू और मुसलमान इस फैसले की घटना को अपने राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अमादा है / जिससे बचने का एक सीधा और सरल सा तरीका है कि उन्हें उनके ही घरों में कुछ दिनों के लिए नज़रबंद कर देना चाहिए और देश के बाकी नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए / भारत के ३० प्रतिशत लोग रोज कमाते है और रोज खाते है एक दिन अगर यह न कमा पाए तो खाली पेट सोने को मजबूर होते है / धारा १४४ , तमाम पुलिस बलों को जहां तहां सुरक्षा के नाम पर प्रतिनियुक्त कर देने से करोणों लोगों को उनकी दिन प्रतिदिन की मजदूरी से वंचित कर सकती है, कर रही है / हमारी सरकार के पास संभावित दंगो से निपटने के लिए तमाम तरह के बल मौजूद है जिन्हें सरकार बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह जहा तहा उगा करके स्थिति को नियंत्रण में रखने का स्वांग कर रही है / हमारी सरकार ने और अधिकारियों ने उन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किये है जो कि सुरक्षा व्यवस्था या धारा १४४ की वजह से अपनी दिन प्रतिदिन की रोटी नहीं कमा पायेंगे और भूखे पेट सोना पड़ेगा परिवार सहित / भूखे व्यक्ति को बरगलाने से रोकने के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये है ? इन्हें रोटी कैसे मिलेगी यह कौन तय करेगा और कौन जिम्मेदार है इनके भूखे पेट का ? कही यह साजिश तो नहीं है कि मंदिर - मस्जिद और संभावित दंगो की आंड में इन गरीबों से बेसहारों से निजात पा लेने की ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कैसे लोग आ गए है जिन्हें भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है जिन्हें भारत के भूखे लोगों का ख़याल नहीं है ? हमें ऐसी सुरक्षा नहीं चाहिए जिससे किसी की रोटी छिनती हो हमें कोई मंदिर या मस्जिद नहीं चाहिए हमें हमारे भोजन के अधिकार और भय रहित जीवन जीने का अधिकार चाहिए / हम संगीनों में जीने के नहीं आदी हमें संगीनों से डर लगता है, संगीनें मेरी रोटी छीनती है, संगीनें मेरी आज़ादी छीनती है / मुझे मेरे हाल पर छोडो मुझे अपने भाई बंधुओं से नहीं खतरा, हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /
पिछले एक महीने से यह सब पढ़ - पढ़ कर मै तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि दरअसल कौन क्या कर रहा है और कौन क्या करना चाहता है / यह सब हव्वा क्यों खड़ा किया जा रहा है कि २४ सितम्बर के फैसले के बाद हिंसा होना एक तय सी बात है ? ऐसा लग रहा है एक पूर्वनियोजित हिंसा को जायज ठहराए जाने कि मुहीम में सब लोग लगे हुए है / क्या भारत के हिंदू और मुसलमान भाइयों को देश और देश की न्याय व्यवस्था पर तनिक भी विश्वास नहीं है / या फिर हमारे प्रशाशनिक अधिकारियों को हम भारतीयों पर तनिक भी विश्वास नहीं है / मुझे तो कम से कम यही समझ में आ रहा है कि कुछ मौकापरस्त हिंदू और मुसलमान इस फैसले की घटना को अपने राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अमादा है / जिससे बचने का एक सीधा और सरल सा तरीका है कि उन्हें उनके ही घरों में कुछ दिनों के लिए नज़रबंद कर देना चाहिए और देश के बाकी नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए / भारत के ३० प्रतिशत लोग रोज कमाते है और रोज खाते है एक दिन अगर यह न कमा पाए तो खाली पेट सोने को मजबूर होते है / धारा १४४ , तमाम पुलिस बलों को जहां तहां सुरक्षा के नाम पर प्रतिनियुक्त कर देने से करोणों लोगों को उनकी दिन प्रतिदिन की मजदूरी से वंचित कर सकती है, कर रही है / हमारी सरकार के पास संभावित दंगो से निपटने के लिए तमाम तरह के बल मौजूद है जिन्हें सरकार बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह जहा तहा उगा करके स्थिति को नियंत्रण में रखने का स्वांग कर रही है / हमारी सरकार ने और अधिकारियों ने उन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किये है जो कि सुरक्षा व्यवस्था या धारा १४४ की वजह से अपनी दिन प्रतिदिन की रोटी नहीं कमा पायेंगे और भूखे पेट सोना पड़ेगा परिवार सहित / भूखे व्यक्ति को बरगलाने से रोकने के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये है ? इन्हें रोटी कैसे मिलेगी यह कौन तय करेगा और कौन जिम्मेदार है इनके भूखे पेट का ? कही यह साजिश तो नहीं है कि मंदिर - मस्जिद और संभावित दंगो की आंड में इन गरीबों से बेसहारों से निजात पा लेने की ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कैसे लोग आ गए है जिन्हें भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है जिन्हें भारत के भूखे लोगों का ख़याल नहीं है ? हमें ऐसी सुरक्षा नहीं चाहिए जिससे किसी की रोटी छिनती हो हमें कोई मंदिर या मस्जिद नहीं चाहिए हमें हमारे भोजन के अधिकार और भय रहित जीवन जीने का अधिकार चाहिए / हम संगीनों में जीने के नहीं आदी हमें संगीनों से डर लगता है, संगीनें मेरी रोटी छीनती है, संगीनें मेरी आज़ादी छीनती है / मुझे मेरे हाल पर छोडो मुझे अपने भाई बंधुओं से नहीं खतरा, हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /
Wednesday, September 22, 2010
होशियार
२४ सितम्बर को अदालत के फैसले के बाद जो लोग ज़रा भी बदमाशी करने की सोच रहे है उनके लिए एक चेतावनी देने वाली खबर है / उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पहले से कितनी लाठिया है यह तो मुझे नहीं पता लेकिन २४ सितम्बर को ध्यान में रखते हुए एक लाख लाठी उत्तर प्रदेश पुलिस खरीदने जा रही है / उत्तर प्रदेश की पुलिस और लाठी का चोली दामन वाला पुराना साथ है / कई पुलिस के उप निरीक्षक अपने साथ कई कई लाठिया लेकर चलते है तो आम जनता उन्हें डंडा गुरु आदि नाम से जादा जानती है उनके अपने नामो से कम / संभावित बलवाइयो होशियार, अभी मौका है चेत जाओ और हिंसा के बारे में मत सोचो / अमन चैन बरकरार रहने दो जहा पर जितना भी है, वैसे भी भारत का एक बड़ा हिस्सा रोज़ धू - धू कर जल रहा है /
Sunday, September 19, 2010
मनरेगा और मिलेनियम डेवेलोपमेंट गोल
मनरेगा माने - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना, एक ऐसी अभूतपूर्व योजना जिसने हर मजदूर का नाम किसी ने किसी वित्तीय संसथान में लिखवा दिया / मजदूरी चाहे दो दिन की मिले या फिर योजना के अनुसार१०० दिन, भुगतान वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से ही होंगे यह बात तय है / यह बात तय हुई इसलिए कि, इससे मजदूरों का वित्तीय शोषण नहीं होने पायेगा / क्या वित्तीय शोषण रुका ? शोषण करने वालो के अलांवा हर कोई कहेगा कि नहीं बल्कि शोषण करने वालो की जमात में एक और बिरादरी बढ़ गयी / क्या शोषण और भ्रश्टाचार रोकना असंभव है ? भारत में यह सचमुच फिलहाल असंभव है / असंभव क्यों ? क्यूंकि यहाँ हर कोइ बिना मेहनत किये दोहरा लाभ चाहता है, मजदूर से लेकरके राजनेता सब भ्रष्ट और बटे हुए है, इमानदारी शब्द कोष में सो रही है/ आप को इलाहाबाद से दिल्ली जाना है, सुबह आप आरक्षण केंद्र पर पहुचिये तो आपको प्रतीक्षा सूची का टिकेट मिलेगा, थोड़ा दाए बाए नज़र दौड़ाएंगे तो किसी दलाल से आपको आरक्षित टिकेट मिल जाएगा और आप अपनी यात्रा कर सकते है, लेकिन इसमे भी अभी एक नए घोटाले का पर्दाफाश हुआ है कि, मुंबई के दलाल आरक्षण केंद्र से आरक्षित टिकेट खरीद कर यात्रियों को इन्टरनेट वाला कागज़ का टिकेट पकड़ा देते थे, यात्री यात्रा पर और दलाल पुनः आरक्षण केंद्र पर कि उसने यात्रा नहीं की कीन्ही कारणों से उसे उसका पैसा लौटा दिया जाए / रेल के नियम केहिसाब से बाबू उसे उसके ना यात्रा किये हुए टिकेट का भुगतान कर देती है और उधर यात्रा भी हो रही है / यह एकबानगी है भ्रष्टाचार की / क्या आपको लगता है कि बिना विभागीय मिलीभगत के यह संभव है ? आइये एक बार मिलेनियम डेवेलोपमेंट गोल की तरफ चलते है / २०१५ तक निम्नलिखित लक्ष्यों की पूर्ती हो जाने चाहिए -
- गरीबी और भूख से मुक्ति - भारत में यह मुक्ति का काम मनरेगा कर रहा है /
- सबको शिक्षा - अनिवार्य शिक्षा अधिनियम पास हो गया है और शिक्षामित्र लगे है सबको शिक्षा देने में /
- लैंगिक समानता - दहेज़ , कन्या भ्रूण हत्या , इज्जत के लिए हत्या / एक अच्छी बात कि समान लिंग के लोगोको एक साथ रहने का कानूनी अधिकार मिल गया है / शायद इसी को लैंगिक समानता कहते हो /
- स्वस्थ्य बच्चे - पोलिओ ड्राप और खिचडी बना रही है स्वस्थ बच्चो को /
-मातृत्व स्वास्थ - आयरन की गोलिया और अस्पताल के गेट पर हो रहे प्रसव , अप्रशिक्षित दाइयो के द्वारा करायाजा रहा प्रसव /
- एच आई वी / एड्स से बचाव - लक्षित हस्तक्षेप परियोजना नाको, कांडोम बाटना और जो लोग नशीली दवाईयासिरिंज के माध्यम से लेते है उन्हें मुफ्त सिरिंज उपलप्ध करा रही है
- पर्यावरणीय स्थिरिता - बाँध बनाना , पहाड़ खोदना और नदी जोड़ना / नदी के किनारे सड़क बनाना सब जारी है
- और आखिरी लक्ष्य वैश्विक साझेदारी - किस देश का कौन सा सामान, कौन सा हथियार कैसे कपडे आप ख़रीदना चाहेंगे भारत में / कई देशो के गैर सरकारी संगठनो के कार्यालय भारत सहित अन्य देशो में भी खुल गए है, उपरोक्त लक्ष्यों की पूर्ती में यह लोग धन को पानी की तरह खर्च कर रहे है /
अब अंत में मैं इन बातो को पढ़ने वालो से यह कहना चाहूंगा और जानना चाहूँगा कि आप का क्या लक्ष्य है औरआपकी क्या भूमिका है उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने और कराने में / मैं यह भी जानना चाहूंगा कि क्या मनरेगा से भारत में गरीबी ख़तम हो जायेगी ? स्कूल में मिलने वाले पोषाहार से बच्चो में कुपोषण ख़तम हो जाएगा ? कांडोमऔर सिरिंज बाट कर एच आई वी - एड्स पर नियंत्रण हो सकता है ? भारत में कितने लोग प्रतिवर्ष तपेदिक और जल जनित्र बीमारियों से मरते है ? कितने मजदूरों का फेफड़ा सिलिकासिस की वजह से खराब हो गया है ?
आइये तय करे कि हमें इस शहस्राब्दी के झूठे लक्ष्यों के पीछे अपनी ऊर्जा लगानी है या सचमुच के परिवर्तन की दिशा में श्रम करना है / कृपया सोचे और इस बात को बहस का विषय बनाए / हमारे अधिकतम गैर सरकारी संगठन बिना परिणाम के बारे में जाने इस लक्ष्य के पीछे दिन रात एक किये हुए है / ज़मीन की मालिकाना हक़ का मुद्दा , जल - जंगल - ज़मीन का मुद्दा मनरेगा से पीछे कैसे छूट गया ?
धन्यवाद /
/ /
- गरीबी और भूख से मुक्ति - भारत में यह मुक्ति का काम मनरेगा कर रहा है /
- सबको शिक्षा - अनिवार्य शिक्षा अधिनियम पास हो गया है और शिक्षामित्र लगे है सबको शिक्षा देने में /
- लैंगिक समानता - दहेज़ , कन्या भ्रूण हत्या , इज्जत के लिए हत्या / एक अच्छी बात कि समान लिंग के लोगोको एक साथ रहने का कानूनी अधिकार मिल गया है / शायद इसी को लैंगिक समानता कहते हो /
- स्वस्थ्य बच्चे - पोलिओ ड्राप और खिचडी बना रही है स्वस्थ बच्चो को /
-मातृत्व स्वास्थ - आयरन की गोलिया और अस्पताल के गेट पर हो रहे प्रसव , अप्रशिक्षित दाइयो के द्वारा करायाजा रहा प्रसव /
- एच आई वी / एड्स से बचाव - लक्षित हस्तक्षेप परियोजना नाको, कांडोम बाटना और जो लोग नशीली दवाईयासिरिंज के माध्यम से लेते है उन्हें मुफ्त सिरिंज उपलप्ध करा रही है
- पर्यावरणीय स्थिरिता - बाँध बनाना , पहाड़ खोदना और नदी जोड़ना / नदी के किनारे सड़क बनाना सब जारी है
- और आखिरी लक्ष्य वैश्विक साझेदारी - किस देश का कौन सा सामान, कौन सा हथियार कैसे कपडे आप ख़रीदना चाहेंगे भारत में / कई देशो के गैर सरकारी संगठनो के कार्यालय भारत सहित अन्य देशो में भी खुल गए है, उपरोक्त लक्ष्यों की पूर्ती में यह लोग धन को पानी की तरह खर्च कर रहे है /
अब अंत में मैं इन बातो को पढ़ने वालो से यह कहना चाहूंगा और जानना चाहूँगा कि आप का क्या लक्ष्य है औरआपकी क्या भूमिका है उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने और कराने में / मैं यह भी जानना चाहूंगा कि क्या मनरेगा से भारत में गरीबी ख़तम हो जायेगी ? स्कूल में मिलने वाले पोषाहार से बच्चो में कुपोषण ख़तम हो जाएगा ? कांडोमऔर सिरिंज बाट कर एच आई वी - एड्स पर नियंत्रण हो सकता है ? भारत में कितने लोग प्रतिवर्ष तपेदिक और जल जनित्र बीमारियों से मरते है ? कितने मजदूरों का फेफड़ा सिलिकासिस की वजह से खराब हो गया है ?
आइये तय करे कि हमें इस शहस्राब्दी के झूठे लक्ष्यों के पीछे अपनी ऊर्जा लगानी है या सचमुच के परिवर्तन की दिशा में श्रम करना है / कृपया सोचे और इस बात को बहस का विषय बनाए / हमारे अधिकतम गैर सरकारी संगठन बिना परिणाम के बारे में जाने इस लक्ष्य के पीछे दिन रात एक किये हुए है / ज़मीन की मालिकाना हक़ का मुद्दा , जल - जंगल - ज़मीन का मुद्दा मनरेगा से पीछे कैसे छूट गया ?
धन्यवाद /
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Thursday, August 12, 2010
कल
थाईलैंड की महारानी सुश्री सिरिकित का जन्म दिन था , थाई समुदाय इस दिन को राष्ट्रीय मातृ दिवस के रूप में मनाता है / आज के दिन सारे बच्चे अपनी माँ को बेला के फूलों का पुष्पगुच्छ भेट कर उनका अभिनन्दन करते है, और अभिनन्दन करने के लिए हरे रंग का वस्त्र पहनते है / आज के करीब दो दशक पहले यह परम्परा शुरू हुई और महारानी थाईलैंड का जन्म दिन आम माओं के लिए भी उनका अपना दिन बन गया / इस दिन को राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा सके और पूरे थाईलैंड में इसे मान्यता मिल सके, इसलिए थाईलैंड की सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित कर रक्खा है / महारानी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर भव्य शाही कार्यक्रम राजमहल में आयोजित किया जाता है, इस कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री सहित देश के हर बड़े अधिकारी और राजनेता सम्मिलित होते है / जब मुझे इस आयोजन का ज्ञान हुआ तो मैंने अपने कुछ थाई मित्रों से इस सन्दर्भ में जानना चाहा / उन लोगों से बात करके मेरा जो ज्ञान वर्धन हुआ वो भी सुख दुःख से लबरेज है / मेरे एक मित्र ने बताया कि कल मेरे बच्चे के स्कूल में सुबह की प्रार्थना के बाद प्राध्यापक ने सभी बच्चों से कुछ सवाल किये /
१- क्या आप सभी लोग जानते है कि कल कौन सा दिवस है ?
२- आप में से वे बच्चे हाथ उठाये जिनकी माँ नहीं है ?
दूसरा सवाल सुन करके कई हाथ तो ऊपर उठे, लेकिन उठाने के बाद उनकी आँखों में आंशू भर गए और वे अपने आपको अन्य बच्चों से अलग महसूस करने लगे / कई ने तो प्रार्थना के बाद चुपचाप स्कूल से बाहर निकलने का असफल प्रयास भी किया / मेरे मित्र ने आगे बताया कि जो बच्चे बड़े है और जिनको इस दिन का ज्ञान है और उनकी माँ ज़िंदा नहीं है या किन्ही कारणों से साथ में नहीं रहती है, वो ११ अगस्त को स्कूल नहीं जाना चाहते है / मैंने जब यह सब सूना तो मेरी भी आँखे भर आयीं, किन्ही वजहों से अगर माँ साथ में नहीं है तो यह अपने आप में एक दुखद अहसास होता है, और अगर उसका सार्वजनिक रूप से अहसास कराया जाए तो असहनीय ही होगा /
आज पूरे दिन थाईलैंड के टीवी चैनलों पर मातृप्रेम के गीत सुबह से ही प्रसारित हो रहे है , अखबारों में कल शाम राजमहल में हुए शाही कार्यक्रम की खबर और चित्रों से भरे पड़े है / थाईलैंड मुझे एक अजीब तरह का देश लगता है एक तरफ तो आधुनिक सुविधाओं से संवृध और गरीबी से दूर लेकिन पुरानी परम्पराओं से जकड़ा हुआ / मैंने यहाँ के शहर, गाव और वो क्षेत्र भी देखे है जो कि अशांत और हिंसा ग्रस्त है, लेकिन मुझे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, , लाओस , कम्बोडिया और म्यांमार जैसी गरीबी नहीं दिखी / यहाँ के महाराज श्री भूमिबोल यहाँ के देवता गौतम बुद्ध के समानांतर पूजे जाते है लेकिन हमारे गणपति भगवान ने पता नहीं कैसे यहाँ के लगभग हर पवित्र और पूज्यनीय समझे जाने वाले जगहों पर अपनी जगह बनायी हुई है, यह मुझे थोडा आश्चर्यचकित करती है यहाँ / थाईलैंड की सरकार मातृ दिवस के अवसर पर हर वर्ष कुछ माताओं को सम्मानित भी करता है, वे माताएं जिन्होंने अपने जीवन में कुछ विशेष परिस्थितियों में अपने बच्चे या बच्चों का पालन पोषण करके उन्हें विशेष बनाया हो / इस वर्ष २२० माओं को सम्मानित करने के खबर मिली है, यह सम्मान समारोह पूरे देश में कई संगठनों के द्वारा आयोजित होता है / मातृदिवस के साथ - साथ यहाँ ५ दिसम्बर को राष्ट्रीय पितृ दिवस भी मनाया जाता है महाराज भूमिबोल के जन्मदिवस के अवसर पर /
१- क्या आप सभी लोग जानते है कि कल कौन सा दिवस है ?
२- आप में से वे बच्चे हाथ उठाये जिनकी माँ नहीं है ?
दूसरा सवाल सुन करके कई हाथ तो ऊपर उठे, लेकिन उठाने के बाद उनकी आँखों में आंशू भर गए और वे अपने आपको अन्य बच्चों से अलग महसूस करने लगे / कई ने तो प्रार्थना के बाद चुपचाप स्कूल से बाहर निकलने का असफल प्रयास भी किया / मेरे मित्र ने आगे बताया कि जो बच्चे बड़े है और जिनको इस दिन का ज्ञान है और उनकी माँ ज़िंदा नहीं है या किन्ही कारणों से साथ में नहीं रहती है, वो ११ अगस्त को स्कूल नहीं जाना चाहते है / मैंने जब यह सब सूना तो मेरी भी आँखे भर आयीं, किन्ही वजहों से अगर माँ साथ में नहीं है तो यह अपने आप में एक दुखद अहसास होता है, और अगर उसका सार्वजनिक रूप से अहसास कराया जाए तो असहनीय ही होगा /
आज पूरे दिन थाईलैंड के टीवी चैनलों पर मातृप्रेम के गीत सुबह से ही प्रसारित हो रहे है , अखबारों में कल शाम राजमहल में हुए शाही कार्यक्रम की खबर और चित्रों से भरे पड़े है / थाईलैंड मुझे एक अजीब तरह का देश लगता है एक तरफ तो आधुनिक सुविधाओं से संवृध और गरीबी से दूर लेकिन पुरानी परम्पराओं से जकड़ा हुआ / मैंने यहाँ के शहर, गाव और वो क्षेत्र भी देखे है जो कि अशांत और हिंसा ग्रस्त है, लेकिन मुझे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, , लाओस , कम्बोडिया और म्यांमार जैसी गरीबी नहीं दिखी / यहाँ के महाराज श्री भूमिबोल यहाँ के देवता गौतम बुद्ध के समानांतर पूजे जाते है लेकिन हमारे गणपति भगवान ने पता नहीं कैसे यहाँ के लगभग हर पवित्र और पूज्यनीय समझे जाने वाले जगहों पर अपनी जगह बनायी हुई है, यह मुझे थोडा आश्चर्यचकित करती है यहाँ / थाईलैंड की सरकार मातृ दिवस के अवसर पर हर वर्ष कुछ माताओं को सम्मानित भी करता है, वे माताएं जिन्होंने अपने जीवन में कुछ विशेष परिस्थितियों में अपने बच्चे या बच्चों का पालन पोषण करके उन्हें विशेष बनाया हो / इस वर्ष २२० माओं को सम्मानित करने के खबर मिली है, यह सम्मान समारोह पूरे देश में कई संगठनों के द्वारा आयोजित होता है / मातृदिवस के साथ - साथ यहाँ ५ दिसम्बर को राष्ट्रीय पितृ दिवस भी मनाया जाता है महाराज भूमिबोल के जन्मदिवस के अवसर पर /
Tuesday, August 10, 2010
जे है बुंदेलखंड /
बुंदेलखंड के पहाड़ खुद कर, मध्य / उत्तर प्रदेश के शहरों में कृतिम पहाड़ में बदल गए, इस प्रक्रिया में लाखों टन डीजल धुआं बन कर पूरे आसमान में छा गया / पेड़, जंगल भी ईट भट्ठों और आरामदायक कुर्सियां और बिस्तरों में बदल गए / और हम कहते है की बुंदेलखंड में सूखा है, बुंदेलखंड मरुस्थल बन रहा है और हमारी सरकार कुछ नहीं कर रही है / जे बात सरकार सुन करके जो करेगी उसमे भी भ्रष्टाचार होगा और अपन चीलम पीते हुए कहेंगे कि, ' जेही किस्मत है बुंदेलखंड की " / अरे जागो अब नहीं जागोगे तो फिर जागने का कोई मौका नहीं मिलेगा मुसीबत अब नाक तक पहुच गयी है / उड़ीसा से जिस तरह पत्नी खरीद कर लाते हो, उसी तरह उड़ीसा से पानी भी लाना पडेगा /
और बुंदेलखंड की स्थिति पर चलचित्र वाली आख्या तैयार करने वाले कमाल खान जो कि, एन डी टी वी के पत्रकार है, को इस वर्ष राम नाथ गोयनका सम्मान से नवाजा गया है / बधाई उन्हें । किसी को तो लाभ हुआ बुंदेलखंड से /
कमाल खान की चलचित्रों वाली विशेष आख्या के लिए यहाँ क्लिक करे
लाभ कुछ अन्य लोगों को भी हो रहा है बुंदेलखंड में लेकिन उनकी गिनती बहुत कम है / यह लोग या तो पहाड़ खोदने वाले ठेकेदार है या फिर पत्थर तोड़ कर गिट्टी बनाने वाले या सिलिका बनाने वाले / एक और बिरादरी है बुंदेलखंड में जो कि लाभ कमा रही है इस बदहाल, भूखे और गरीब बुंदेलखंड में इस बिरादरी को कहते है, गैर सरकारी संगठन / यह सारे गैर सरकारी संगठनों के प्रमुख करता धर्ता को लाभ ही लाभ हो रहा है / कई लोग तो ऐसे है जिन्होंने बचपन में साइकिल की सवारी भी नहीं की थी, घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से लेकिन आज कल वे वातानुकूलित कारों में चलते है और गैर सरकारी संगठन नामक कारखाने के मुखिया है /
बुंदेलखंड में सूदखोरी से होने वाली हत्याओं ( आत्म ह्त्या ) का ग्राफ भट्ठे की चिमनी के धूए की तरह हर महीना ऊपर उठता है / गरीबी का चरम यह है कि एक घर में दो से अधिक महिलाएं तो है, लेकिन घर में साड़ी एक ही है , जिसे बाहर निकालने वाली महिला पहनती है, घर के अंदर की महिलाए आधे - अधूरे वस्त्रों में अपने शरीर को किसी तरह तोपे ढांके बैठी रहती है / एक साथ यह महिलाएं घर से बाहर भी नहीं निकल सकती है /
और बुंदेलखंड की स्थिति पर चलचित्र वाली आख्या तैयार करने वाले कमाल खान जो कि, एन डी टी वी के पत्रकार है, को इस वर्ष राम नाथ गोयनका सम्मान से नवाजा गया है / बधाई उन्हें । किसी को तो लाभ हुआ बुंदेलखंड से /
लाभ कुछ अन्य लोगों को भी हो रहा है बुंदेलखंड में लेकिन उनकी गिनती बहुत कम है / यह लोग या तो पहाड़ खोदने वाले ठेकेदार है या फिर पत्थर तोड़ कर गिट्टी बनाने वाले या सिलिका बनाने वाले / एक और बिरादरी है बुंदेलखंड में जो कि लाभ कमा रही है इस बदहाल, भूखे और गरीब बुंदेलखंड में इस बिरादरी को कहते है, गैर सरकारी संगठन / यह सारे गैर सरकारी संगठनों के प्रमुख करता धर्ता को लाभ ही लाभ हो रहा है / कई लोग तो ऐसे है जिन्होंने बचपन में साइकिल की सवारी भी नहीं की थी, घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से लेकिन आज कल वे वातानुकूलित कारों में चलते है और गैर सरकारी संगठन नामक कारखाने के मुखिया है /
बुंदेलखंड में सूदखोरी से होने वाली हत्याओं ( आत्म ह्त्या ) का ग्राफ भट्ठे की चिमनी के धूए की तरह हर महीना ऊपर उठता है / गरीबी का चरम यह है कि एक घर में दो से अधिक महिलाएं तो है, लेकिन घर में साड़ी एक ही है , जिसे बाहर निकालने वाली महिला पहनती है, घर के अंदर की महिलाए आधे - अधूरे वस्त्रों में अपने शरीर को किसी तरह तोपे ढांके बैठी रहती है / एक साथ यह महिलाएं घर से बाहर भी नहीं निकल सकती है /
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