Thursday, September 23, 2010

कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय को अयोध्या मसाले पर का २४ सितम्बर को फैसला सुनाने पर रोक लगा दी है / सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर किया है /
मै समझ नहीं पा रहा हूँ रमेश चन्द्र के इस तर्क को कि, जिस मुद्दे पर विगत ६० वर्षों से मुक़दमा चल रहा है और कल फैसला सुनाया जाना था उसे रमेश चन्द्र समझौते और दंगे की दुहाई दे करके बार - बार फैसले को रोकने की कोशिश क्यों कर रहे है / रमेश चन्द्र को क्यों विश्वास है कि फैसले के बाद दंगे होंगे और स्थिति को पुलिस और अर्ध सैनिक बल नियंत्रित नहीं कर पायेंगे ? आखिर इसके पीछे उनके पास कौन से तर्क है या कौन से विश्वसनीय एजेंसी ने उन्हें सूचना मुहैया कराई है कि, फैसले के बाद दोनों में से किसी एक धर्म के लोग हिंसक हो उठेंगे ? फैसले के मद्देनज़र जितने बलों की अब तक तैनाती हो चुकी है उसे और कितने दिनों तक तैनात रहना पड़ेगा उसका खर्च कहा से किस मद से उठाया जाएगा ? कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा ? ६० वर्षों तक न्यायालय के बाहर कोई सुलह समझौता नहीं हुआ और ऍन फैसले की घड़ी में सुलह का राग अलापा जा रहा है / इस पूरे मसले पर हमारी राज्य सरकारे क्यों चुप्पी साधे हुए है, एक व्यक्ति कह रहा है कि फैसले के बाद स्थिति नियंत्रण के बाहर होगी और बिना किसी जाच के बिना किसी पड़ताल के सब लग गए हिंसा को रोकने के क्रम में /

हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /

२४ सितम्बर , इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला , दंगा होने के पूर्ण आसार , पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगतार शांति व्यवस्था बनाए रखने के इंतज़ाम में जुटे हुए है , सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोग शांति बनाए रखने के लिए लगे हुए है /

पिछले एक महीने से यह सब पढ़ - पढ़ कर मै तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि दरअसल कौन क्या कर रहा है और कौन क्या करना चाहता है / यह सब हव्वा क्यों खड़ा किया जा रहा है कि २४ सितम्बर के फैसले के बाद हिंसा होना एक तय सी बात है ? ऐसा लग रहा है एक पूर्वनियोजित हिंसा को जायज ठहराए जाने कि मुहीम में सब लोग लगे हुए है / क्या भारत के हिंदू और मुसलमान भाइयों को देश और देश की न्याय व्यवस्था पर तनिक भी विश्वास नहीं है / या फिर हमारे प्रशाशनिक अधिकारियों को हम भारतीयों पर तनिक भी विश्वास नहीं है / मुझे तो कम से कम यही समझ में आ रहा है कि कुछ मौकापरस्त हिंदू और मुसलमान इस फैसले की घटना को अपने राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अमादा है / जिससे बचने का एक सीधा और सरल सा तरीका है कि उन्हें उनके ही घरों में कुछ दिनों के लिए नज़रबंद कर देना चाहिए और देश के बाकी नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए / भारत के ३० प्रतिशत लोग रोज कमाते है और रोज खाते है एक दिन अगर यह न कमा पाए तो खाली पेट सोने को मजबूर होते है / धारा १४४ , तमाम पुलिस बलों को जहां तहां सुरक्षा के नाम पर प्रतिनियुक्त कर देने से करोणों लोगों को उनकी दिन प्रतिदिन की मजदूरी से वंचित कर सकती है, कर रही है / हमारी सरकार के पास संभावित दंगो से निपटने के लिए तमाम तरह के बल मौजूद है जिन्हें सरकार बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह जहा तहा उगा करके स्थिति को नियंत्रण में रखने का स्वांग कर रही है / हमारी सरकार ने और अधिकारियों ने उन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किये है जो कि सुरक्षा व्यवस्था या धारा १४४ की वजह से अपनी दिन प्रतिदिन की रोटी नहीं कमा पायेंगे और भूखे पेट सोना पड़ेगा परिवार सहित / भूखे व्यक्ति को बरगलाने से रोकने के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये है ? इन्हें रोटी कैसे मिलेगी यह कौन तय करेगा और कौन जिम्मेदार है इनके भूखे पेट का ? कही यह साजिश तो नहीं है कि मंदिर - मस्जिद और संभावित दंगो की आंड में इन गरीबों से बेसहारों से निजात पा लेने की ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कैसे लोग आ गए है जिन्हें भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है जिन्हें भारत के भूखे लोगों का ख़याल नहीं है ? हमें ऐसी सुरक्षा नहीं चाहिए जिससे किसी की रोटी छिनती हो हमें कोई मंदिर या मस्जिद नहीं चाहिए हमें हमारे भोजन के अधिकार और भय रहित जीवन जीने का अधिकार चाहिए / हम संगीनों में जीने के नहीं आदी हमें संगीनों से डर लगता है, संगीनें मेरी रोटी छीनती है, संगीनें मेरी आज़ादी छीनती है / मुझे मेरे हाल पर छोडो मुझे अपने भाई बंधुओं से नहीं खतरा, हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /

Wednesday, September 22, 2010

होशियार

२४ सितम्बर को अदालत के फैसले के बाद जो लोग ज़रा भी बदमाशी करने की सोच रहे है उनके लिए एक चेतावनी देने वाली खबर है / उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पहले से कितनी लाठिया है यह तो मुझे नहीं पता लेकिन २४ सितम्बर को ध्यान में रखते हुए एक लाख लाठी उत्तर प्रदेश पुलिस खरीदने जा रही है / उत्तर प्रदेश की पुलिस और लाठी का चोली दामन वाला पुराना साथ है / कई पुलिस के उप निरीक्षक अपने साथ कई कई लाठिया लेकर चलते है तो आम जनता उन्हें डंडा गुरु आदि नाम से जादा जानती है उनके अपने नामो से कम / संभावित बलवाइयो होशियार, अभी मौका है चेत जाओ और हिंसा के बारे में मत सोचो / अमन चैन बरकरार रहने दो जहा पर जितना भी है, वैसे भी भारत का एक बड़ा हिस्सा रोज़ धू - धू कर जल रहा है /

Sunday, September 19, 2010

मनरेगा और मिलेनियम डेवेलोपमेंट गोल

मनरेगा माने - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना, एक ऐसी अभूतपूर्व योजना जिसने हर मजदूर का नाम किसी ने किसी वित्तीय संसथान में लिखवा दिया / मजदूरी चाहे दो दिन की मिले या फिर योजना के अनुसार१०० दिन, भुगतान वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से ही होंगे यह बात तय है / यह बात तय हुई इसलिए कि, इससे मजदूरों का वित्तीय शोषण नहीं होने पायेगा / क्या वित्तीय शोषण रुका ? शोषण करने वालो के अलांवा हर कोई कहेगा कि नहीं बल्कि शोषण करने वालो की जमात में एक और बिरादरी बढ़ गयी / क्या शोषण और भ्रश्टाचार रोकना असंभव है ? भारत में यह सचमुच फिलहाल असंभव है / असंभव क्यों ? क्यूंकि यहाँ हर कोइ बिना मेहनत किये दोहरा लाभ चाहता है, मजदूर से लेकरके राजनेता सब भ्रष्ट और बटे हुए है, इमानदारी शब्द कोष में सो रही है/ आप को इलाहाबाद से दिल्ली जाना है, सुबह आप आरक्षण केंद्र पर पहुचिये तो आपको प्रतीक्षा सूची का टिकेट मिलेगा, थोड़ा दाए बाए नज़र दौड़ाएंगे तो किसी दलाल से आपको आरक्षित टिकेट मिल जाएगा और आप अपनी यात्रा कर सकते है, लेकिन इसमे भी अभी एक नए घोटाले का पर्दाफाश हुआ है कि, मुंबई के दलाल आरक्षण केंद्र से आरक्षित टिकेट खरीद कर यात्रियों को इन्टरनेट वाला कागज़ का टिकेट पकड़ा देते थे, यात्री यात्रा पर और दलाल पुनः आरक्षण केंद्र पर कि उसने यात्रा नहीं की कीन्ही कारणों से उसे उसका पैसा लौटा दिया जाए / रेल के नियम केहिसाब से बाबू उसे उसके ना यात्रा किये हुए टिकेट का भुगतान कर देती है और उधर यात्रा भी हो रही है / यह एकबानगी है भ्रष्टाचार की / क्या आपको लगता है कि बिना विभागीय मिलीभगत के यह संभव है ? आइये एक बार मिलेनियम डेवेलोपमेंट गोल की तरफ चलते है / २०१५ तक निम्नलिखित लक्ष्यों की पूर्ती हो जाने चाहिए -
- गरीबी और भूख से मुक्ति - भारत में यह मुक्ति का काम मनरेगा कर रहा है /
- सबको शिक्षा - अनिवार्य शिक्षा अधिनियम पास हो गया है और शिक्षामित्र लगे है सबको शिक्षा देने में /
- लैंगिक समानता - दहेज़ , कन्या भ्रूण हत्या , इज्जत के लिए हत्या / एक अच्छी बात कि समान लिंग के लोगोको एक साथ रहने का कानूनी अधिकार मिल गया है / शायद इसी को लैंगिक समानता कहते हो /
- स्वस्थ्य बच्चे - पोलिओ ड्राप और खिचडी बना रही है स्वस्थ बच्चो को /
-मातृत्व स्वास्थ - आयरन की गोलिया और अस्पताल के गेट पर हो रहे प्रसव , अप्रशिक्षित दाइयो के द्वारा करायाजा रहा प्रसव /
- एच आई वी / एड्स से बचाव - लक्षित हस्तक्षेप परियोजना नाको, कांडोम बाटना और जो लोग नशीली दवाईयासिरिंज के माध्यम से लेते है उन्हें मुफ्त सिरिंज उपलप्ध करा रही है
- पर्यावरणीय स्थिरिता - बाँध बनाना , पहाड़ खोदना और नदी जोड़ना / नदी के किनारे सड़क बनाना सब जारी है
- और आखिरी लक्ष्य वैश्विक साझेदारी - किस देश का कौन सा सामान, कौन सा हथियार कैसे कपडे आप ख़रीदना चाहेंगे भारत में / कई देशो के गैर सरकारी संगठनो के कार्यालय भारत सहित अन्य देशो में भी खुल गए है, उपरोक्त लक्ष्यों की पूर्ती में यह लोग धन को पानी की तरह खर्च कर रहे है /
अब अंत में मैं इन बातो को पढ़ने वालो से यह कहना चाहूंगा और जानना चाहूँगा कि आप का क्या लक्ष्य है औरआपकी क्या भूमिका है उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने और कराने में / मैं यह भी जानना चाहूंगा कि क्या मनरेगा से भारत में गरीबी ख़तम हो जायेगी ? स्कूल में मिलने वाले पोषाहार से बच्चो में कुपोषण ख़तम हो जाएगा ? कांडोमऔर सिरिंज बाट कर एच आई वी - एड्स पर नियंत्रण हो सकता है ? भारत में कितने लोग प्रतिवर्ष तपेदिक और जल जनित्र बीमारियों से मरते है ? कितने मजदूरों का फेफड़ा सिलिकासिस की वजह से खराब हो गया है ?
आइये तय करे कि हमें इस शहस्राब्दी के झूठे लक्ष्यों के पीछे अपनी ऊर्जा लगानी है या सचमुच के परिवर्तन की दिशा में श्रम करना है / कृपया सोचे और इस बात को बहस का विषय बनाए / हमारे अधिकतम गैर सरकारी संगठन बिना परिणाम के बारे में जाने इस लक्ष्य के पीछे दिन रात एक किये हुए है / ज़मीन की मालिकाना हक़ का मुद्दा , जल - जंगल - ज़मीन का मुद्दा मनरेगा से पीछे कैसे छूट गया ?
धन्यवाद /

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