Wednesday, May 13, 2009

गैर सरकारी संगठनों का कानून से उठता भरोसा .

आज कल गैर सरकारी संगठनों में एक नया चलन शुरू हुआ है, चलन नए तरीके के संघर्ष का । इस नए तरीके में लड़ाई कानून या कचहरी में न लड़ करके इन्टरनेट और मोबाइल से लड़ते है । यह वो लोग है, जो की कानून के राज़ (रूल ऑफ़ ला ) की बात करते है । लेकिन ख़ुद कानूनी लडाई लड़ने से या कानूनी कार्यवाही से डरते है, इस लिए यह तथाकथित समाजसेवी ख़ुद को मानवाधिकार कार्यकर्त्ता कहलवाने वाले मोबाइल से संदेश और इन्टरनेट से मेल भेज करके लडाई लड़ते है । इसके पीछे मकसद कोई लडाई लड़ने की नही होती है लड़ने का नाटक करते है जिससे लोगों के बीच इस बात का भ्रम बना रहे कि यह सज्जन लगातार खतरों से घिरे रहकर भी कानून का राज स्थापित कराने की दिशा में रात दिन एक किए है । लेकिन वास्तविकता इससे इतर होती है । इनका मकसद वास्तव में कुछ उन लोगों कि सहानुभूति जुटाना होता है जो कि, इन गैर सरकारी संगठनों को आर्थिक मदद पहुँचाने का काम करते है । ऐसे समाजकर्मी समाज में वंचित और पीड़ित को कौन सी लड़ाई लड़नी सिखायेंगे जिन्हें ख़ुद अपनी लड़ाई लड़नी नही आती है । ऐसे निरीह प्राणी जो कि अपने आप से जुड़े सच को उजागर नही होने देते है और अपनी लडाई लड़ने के बजाय केवल जानने पहचानने वाले और दान दाता एजेंसियों के मध्य मोबाइल और ईमेल से संदेश भेजते है । मुझे हैरत हो रही है यह सब जान करके और तरश आता है इनकी समझदारी पर, इनकी मदद अगर इस देश का कानून और पुलिस नही कर सकती तो कौन सी दान दाता कम्पनी है जो इनकी मदद करेगी ।
दलित, पीड़ित और वंचित लोगों कि कैसे रक्छा हो पायेगी उनके ऊपर हो रहे शोषण से जब, इन लोगों के मसीहा कहलाने वाले लोग और उनके कार्यालय ही सुरक्षित नही रहे ।