Thursday, September 23, 2010

कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय को अयोध्या मसाले पर का २४ सितम्बर को फैसला सुनाने पर रोक लगा दी है / सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर किया है /
मै समझ नहीं पा रहा हूँ रमेश चन्द्र के इस तर्क को कि, जिस मुद्दे पर विगत ६० वर्षों से मुक़दमा चल रहा है और कल फैसला सुनाया जाना था उसे रमेश चन्द्र समझौते और दंगे की दुहाई दे करके बार - बार फैसले को रोकने की कोशिश क्यों कर रहे है / रमेश चन्द्र को क्यों विश्वास है कि फैसले के बाद दंगे होंगे और स्थिति को पुलिस और अर्ध सैनिक बल नियंत्रित नहीं कर पायेंगे ? आखिर इसके पीछे उनके पास कौन से तर्क है या कौन से विश्वसनीय एजेंसी ने उन्हें सूचना मुहैया कराई है कि, फैसले के बाद दोनों में से किसी एक धर्म के लोग हिंसक हो उठेंगे ? फैसले के मद्देनज़र जितने बलों की अब तक तैनाती हो चुकी है उसे और कितने दिनों तक तैनात रहना पड़ेगा उसका खर्च कहा से किस मद से उठाया जाएगा ? कब तक आम भारतवासी को हरी और खाकी वर्दी वालो के बीच संगीनों के साये में रहना पडेगा ? ६० वर्षों तक न्यायालय के बाहर कोई सुलह समझौता नहीं हुआ और ऍन फैसले की घड़ी में सुलह का राग अलापा जा रहा है / इस पूरे मसले पर हमारी राज्य सरकारे क्यों चुप्पी साधे हुए है, एक व्यक्ति कह रहा है कि फैसले के बाद स्थिति नियंत्रण के बाहर होगी और बिना किसी जाच के बिना किसी पड़ताल के सब लग गए हिंसा को रोकने के क्रम में /

हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /

२४ सितम्बर , इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला , दंगा होने के पूर्ण आसार , पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगतार शांति व्यवस्था बनाए रखने के इंतज़ाम में जुटे हुए है , सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोग शांति बनाए रखने के लिए लगे हुए है /

पिछले एक महीने से यह सब पढ़ - पढ़ कर मै तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि दरअसल कौन क्या कर रहा है और कौन क्या करना चाहता है / यह सब हव्वा क्यों खड़ा किया जा रहा है कि २४ सितम्बर के फैसले के बाद हिंसा होना एक तय सी बात है ? ऐसा लग रहा है एक पूर्वनियोजित हिंसा को जायज ठहराए जाने कि मुहीम में सब लोग लगे हुए है / क्या भारत के हिंदू और मुसलमान भाइयों को देश और देश की न्याय व्यवस्था पर तनिक भी विश्वास नहीं है / या फिर हमारे प्रशाशनिक अधिकारियों को हम भारतीयों पर तनिक भी विश्वास नहीं है / मुझे तो कम से कम यही समझ में आ रहा है कि कुछ मौकापरस्त हिंदू और मुसलमान इस फैसले की घटना को अपने राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अमादा है / जिससे बचने का एक सीधा और सरल सा तरीका है कि उन्हें उनके ही घरों में कुछ दिनों के लिए नज़रबंद कर देना चाहिए और देश के बाकी नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए / भारत के ३० प्रतिशत लोग रोज कमाते है और रोज खाते है एक दिन अगर यह न कमा पाए तो खाली पेट सोने को मजबूर होते है / धारा १४४ , तमाम पुलिस बलों को जहां तहां सुरक्षा के नाम पर प्रतिनियुक्त कर देने से करोणों लोगों को उनकी दिन प्रतिदिन की मजदूरी से वंचित कर सकती है, कर रही है / हमारी सरकार के पास संभावित दंगो से निपटने के लिए तमाम तरह के बल मौजूद है जिन्हें सरकार बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह जहा तहा उगा करके स्थिति को नियंत्रण में रखने का स्वांग कर रही है / हमारी सरकार ने और अधिकारियों ने उन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किये है जो कि सुरक्षा व्यवस्था या धारा १४४ की वजह से अपनी दिन प्रतिदिन की रोटी नहीं कमा पायेंगे और भूखे पेट सोना पड़ेगा परिवार सहित / भूखे व्यक्ति को बरगलाने से रोकने के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये है ? इन्हें रोटी कैसे मिलेगी यह कौन तय करेगा और कौन जिम्मेदार है इनके भूखे पेट का ? कही यह साजिश तो नहीं है कि मंदिर - मस्जिद और संभावित दंगो की आंड में इन गरीबों से बेसहारों से निजात पा लेने की ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कैसे लोग आ गए है जिन्हें भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है जिन्हें भारत के भूखे लोगों का ख़याल नहीं है ? हमें ऐसी सुरक्षा नहीं चाहिए जिससे किसी की रोटी छिनती हो हमें कोई मंदिर या मस्जिद नहीं चाहिए हमें हमारे भोजन के अधिकार और भय रहित जीवन जीने का अधिकार चाहिए / हम संगीनों में जीने के नहीं आदी हमें संगीनों से डर लगता है, संगीनें मेरी रोटी छीनती है, संगीनें मेरी आज़ादी छीनती है / मुझे मेरे हाल पर छोडो मुझे अपने भाई बंधुओं से नहीं खतरा, हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /

Wednesday, September 22, 2010

होशियार

२४ सितम्बर को अदालत के फैसले के बाद जो लोग ज़रा भी बदमाशी करने की सोच रहे है उनके लिए एक चेतावनी देने वाली खबर है / उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पहले से कितनी लाठिया है यह तो मुझे नहीं पता लेकिन २४ सितम्बर को ध्यान में रखते हुए एक लाख लाठी उत्तर प्रदेश पुलिस खरीदने जा रही है / उत्तर प्रदेश की पुलिस और लाठी का चोली दामन वाला पुराना साथ है / कई पुलिस के उप निरीक्षक अपने साथ कई कई लाठिया लेकर चलते है तो आम जनता उन्हें डंडा गुरु आदि नाम से जादा जानती है उनके अपने नामो से कम / संभावित बलवाइयो होशियार, अभी मौका है चेत जाओ और हिंसा के बारे में मत सोचो / अमन चैन बरकरार रहने दो जहा पर जितना भी है, वैसे भी भारत का एक बड़ा हिस्सा रोज़ धू - धू कर जल रहा है /

Sunday, September 19, 2010

मनरेगा और मिलेनियम डेवेलोपमेंट गोल

मनरेगा माने - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना, एक ऐसी अभूतपूर्व योजना जिसने हर मजदूर का नाम किसी ने किसी वित्तीय संसथान में लिखवा दिया / मजदूरी चाहे दो दिन की मिले या फिर योजना के अनुसार१०० दिन, भुगतान वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से ही होंगे यह बात तय है / यह बात तय हुई इसलिए कि, इससे मजदूरों का वित्तीय शोषण नहीं होने पायेगा / क्या वित्तीय शोषण रुका ? शोषण करने वालो के अलांवा हर कोई कहेगा कि नहीं बल्कि शोषण करने वालो की जमात में एक और बिरादरी बढ़ गयी / क्या शोषण और भ्रश्टाचार रोकना असंभव है ? भारत में यह सचमुच फिलहाल असंभव है / असंभव क्यों ? क्यूंकि यहाँ हर कोइ बिना मेहनत किये दोहरा लाभ चाहता है, मजदूर से लेकरके राजनेता सब भ्रष्ट और बटे हुए है, इमानदारी शब्द कोष में सो रही है/ आप को इलाहाबाद से दिल्ली जाना है, सुबह आप आरक्षण केंद्र पर पहुचिये तो आपको प्रतीक्षा सूची का टिकेट मिलेगा, थोड़ा दाए बाए नज़र दौड़ाएंगे तो किसी दलाल से आपको आरक्षित टिकेट मिल जाएगा और आप अपनी यात्रा कर सकते है, लेकिन इसमे भी अभी एक नए घोटाले का पर्दाफाश हुआ है कि, मुंबई के दलाल आरक्षण केंद्र से आरक्षित टिकेट खरीद कर यात्रियों को इन्टरनेट वाला कागज़ का टिकेट पकड़ा देते थे, यात्री यात्रा पर और दलाल पुनः आरक्षण केंद्र पर कि उसने यात्रा नहीं की कीन्ही कारणों से उसे उसका पैसा लौटा दिया जाए / रेल के नियम केहिसाब से बाबू उसे उसके ना यात्रा किये हुए टिकेट का भुगतान कर देती है और उधर यात्रा भी हो रही है / यह एकबानगी है भ्रष्टाचार की / क्या आपको लगता है कि बिना विभागीय मिलीभगत के यह संभव है ? आइये एक बार मिलेनियम डेवेलोपमेंट गोल की तरफ चलते है / २०१५ तक निम्नलिखित लक्ष्यों की पूर्ती हो जाने चाहिए -
- गरीबी और भूख से मुक्ति - भारत में यह मुक्ति का काम मनरेगा कर रहा है /
- सबको शिक्षा - अनिवार्य शिक्षा अधिनियम पास हो गया है और शिक्षामित्र लगे है सबको शिक्षा देने में /
- लैंगिक समानता - दहेज़ , कन्या भ्रूण हत्या , इज्जत के लिए हत्या / एक अच्छी बात कि समान लिंग के लोगोको एक साथ रहने का कानूनी अधिकार मिल गया है / शायद इसी को लैंगिक समानता कहते हो /
- स्वस्थ्य बच्चे - पोलिओ ड्राप और खिचडी बना रही है स्वस्थ बच्चो को /
-मातृत्व स्वास्थ - आयरन की गोलिया और अस्पताल के गेट पर हो रहे प्रसव , अप्रशिक्षित दाइयो के द्वारा करायाजा रहा प्रसव /
- एच आई वी / एड्स से बचाव - लक्षित हस्तक्षेप परियोजना नाको, कांडोम बाटना और जो लोग नशीली दवाईयासिरिंज के माध्यम से लेते है उन्हें मुफ्त सिरिंज उपलप्ध करा रही है
- पर्यावरणीय स्थिरिता - बाँध बनाना , पहाड़ खोदना और नदी जोड़ना / नदी के किनारे सड़क बनाना सब जारी है
- और आखिरी लक्ष्य वैश्विक साझेदारी - किस देश का कौन सा सामान, कौन सा हथियार कैसे कपडे आप ख़रीदना चाहेंगे भारत में / कई देशो के गैर सरकारी संगठनो के कार्यालय भारत सहित अन्य देशो में भी खुल गए है, उपरोक्त लक्ष्यों की पूर्ती में यह लोग धन को पानी की तरह खर्च कर रहे है /
अब अंत में मैं इन बातो को पढ़ने वालो से यह कहना चाहूंगा और जानना चाहूँगा कि आप का क्या लक्ष्य है औरआपकी क्या भूमिका है उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने और कराने में / मैं यह भी जानना चाहूंगा कि क्या मनरेगा से भारत में गरीबी ख़तम हो जायेगी ? स्कूल में मिलने वाले पोषाहार से बच्चो में कुपोषण ख़तम हो जाएगा ? कांडोमऔर सिरिंज बाट कर एच आई वी - एड्स पर नियंत्रण हो सकता है ? भारत में कितने लोग प्रतिवर्ष तपेदिक और जल जनित्र बीमारियों से मरते है ? कितने मजदूरों का फेफड़ा सिलिकासिस की वजह से खराब हो गया है ?
आइये तय करे कि हमें इस शहस्राब्दी के झूठे लक्ष्यों के पीछे अपनी ऊर्जा लगानी है या सचमुच के परिवर्तन की दिशा में श्रम करना है / कृपया सोचे और इस बात को बहस का विषय बनाए / हमारे अधिकतम गैर सरकारी संगठन बिना परिणाम के बारे में जाने इस लक्ष्य के पीछे दिन रात एक किये हुए है / ज़मीन की मालिकाना हक़ का मुद्दा , जल - जंगल - ज़मीन का मुद्दा मनरेगा से पीछे कैसे छूट गया ?
धन्यवाद /

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Thursday, August 12, 2010


कल
थाईलैंड की महारानी सुश्री सिरिकित का जन्म दिन था , थाई समुदाय इस दिन को राष्ट्रीय मातृ दिवस के रूप में मनाता है / आज के दिन सारे बच्चे अपनी माँ को बेला के फूलों का पुष्पगुच्छ भेट कर उनका अभिनन्दन करते है, और अभिनन्दन करने के लिए हरे रंग का वस्त्र पहनते है / आज के करीब दो दशक पहले यह परम्परा शुरू हुई और महारानी थाईलैंड का जन्म दिन आम माओं के लिए भी उनका अपना दिन बन गया / इस दिन को राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा सके और पूरे थाईलैंड में इसे मान्यता मिल सके, इसलिए थाईलैंड की सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित कर रक्खा है / महारानी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर भव्य शाही कार्यक्रम राजमहल में आयोजित किया जाता है, इस कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री सहित देश के हर बड़े अधिकारी और राजनेता सम्मिलित होते है / जब मुझे इस आयोजन का ज्ञान हुआ तो मैंने अपने कुछ थाई मित्रों से इस सन्दर्भ में जानना चाहा / उन लोगों से बात करके मेरा जो ज्ञान वर्धन हुआ वो भी सुख दुःख से लबरेज है / मेरे एक मित्र ने बताया कि कल मेरे बच्चे के स्कूल में सुबह की प्रार्थना के बाद प्राध्यापक ने सभी बच्चों से कुछ सवाल किये /
- क्या आप सभी लोग जानते है कि कल कौन सा दिवस है ?
- आप में से वे बच्चे हाथ उठाये जिनकी माँ नहीं है ?
दूसरा सवाल सुन करके कई हाथ तो ऊपर उठे, लेकिन उठाने के बाद उनकी आँखों में आंशू भर गए और वे अपने आपको अन्य बच्चों से अलग महसूस करने लगे / कई ने तो प्रार्थना के बाद चुपचाप स्कूल से बाहर निकलने का असफल प्रयास भी किया / मेरे मित्र ने आगे बताया कि जो बच्चे बड़े है और जिनको इस दिन का ज्ञान है और उनकी माँ ज़िंदा नहीं है या किन्ही कारणों से साथ में नहीं रहती है, वो ११ अगस्त को स्कूल नहीं जाना चाहते है / मैंने जब यह सब सूना तो मेरी भी आँखे भर आयीं, किन्ही वजहों से अगर माँ साथ में नहीं है तो यह अपने आप में एक दुखद अहसास होता है, और अगर उसका सार्वजनिक रूप से अहसास कराया जाए तो असहनीय ही होगा /
आज पूरे दिन थाईलैंड के टीवी चैनलों पर मातृप्रेम के गीत सुबह से ही प्रसारित हो रहे है , अखबारों में कल शाम राजमहल में हुए शाही कार्यक्रम की खबर और चित्रों से भरे पड़े है / थाईलैंड मुझे एक अजीब तरह का देश लगता है एक तरफ तो आधुनिक सुविधाओं से संवृध और गरीबी से दूर लेकिन पुरानी परम्पराओं से जकड़ा हुआ / मैंने यहाँ के शहर, गाव और वो क्षेत्र भी देखे है जो कि अशांत और हिंसा ग्रस्त है, लेकिन मुझे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, , लाओस , कम्बोडिया और म्यांमार जैसी गरीबी नहीं दिखी / यहाँ के महाराज श्री भूमिबोल यहाँ के देवता गौतम बुद्ध के समानांतर पूजे जाते है लेकिन हमारे गणपति भगवान ने पता नहीं कैसे यहाँ के लगभग हर पवित्र और पूज्यनीय समझे जाने वाले जगहों पर अपनी जगह बनायी हुई है, यह मुझे थोडा आश्चर्यचकित करती है यहाँ / थाईलैंड की सरकार मातृ दिवस के अवसर पर हर वर्ष कुछ माताओं को सम्मानित भी करता है, वे माताएं जिन्होंने अपने जीवन में कुछ विशेष परिस्थितियों में अपने बच्चे या बच्चों का पालन पोषण करके उन्हें विशेष बनाया हो / इस वर्ष २२० माओं को सम्मानित करने के खबर मिली है, यह सम्मान समारोह पूरे देश में कई संगठनों के द्वारा आयोजित होता है / मातृदिवस के साथ - साथ यहाँ ५ दिसम्बर को राष्ट्रीय पितृ दिवस भी मनाया जाता है महाराज भूमिबोल के जन्मदिवस के अवसर पर /



Tuesday, August 10, 2010

जे है बुंदेलखंड /

बुंदेलखंड के पहाड़ खुद कर, मध्य / उत्तर प्रदेश के शहरों में कृतिम पहाड़ में बदल गए, इस प्रक्रिया में लाखों टन डीजल धुआं बन कर पूरे आसमान में छा गया / पेड़, जंगल भी ईट भट्ठों और आरामदायक कुर्सियां और बिस्तरों में बदल गए / और हम कहते है की बुंदेलखंड में सूखा है, बुंदेलखंड मरुस्थल बन रहा है और हमारी सरकार कुछ नहीं कर रही है / जे बात सरकार सुन करके जो करेगी उसमे भी भ्रष्टाचार होगा और अपन चीलम पीते हुए कहेंगे कि, ' जेही किस्मत है बुंदेलखंड की " / अरे जागो अब नहीं जागोगे तो फिर जागने का कोई मौका नहीं मिलेगा मुसीबत अब नाक तक पहुच गयी है / उड़ीसा से जिस तरह पत्नी खरीद कर लाते हो, उसी तरह उड़ीसा से पानी भी लाना पडेगा /

और बुंदेलखंड की स्थिति पर चलचित्र वाली आख्या तैयार करने वाले कमाल खान जो कि, एन डी टी वी के पत्रकार है, को इस वर्ष राम नाथ गोयनका सम्मान से नवाजा गया है / बधाई उन्हें । किसी को तो लाभ हुआ बुंदेलखंड से /

कमाल खान की चलचित्रों वाली विशेष आख्या के लिए यहाँ क्लिक करे

लाभ कुछ अन्य लोगों को भी हो रहा है बुंदेलखंड में लेकिन उनकी गिनती बहुत कम है / यह लोग या तो पहाड़ खोदने वाले ठेकेदार है या फिर पत्थर तोड़ कर गिट्टी बनाने वाले या सिलिका बनाने वाले / एक और बिरादरी है बुंदेलखंड में जो कि लाभ कमा रही है इस बदहाल, भूखे और गरीब बुंदेलखंड में इस बिरादरी को कहते है, गैर सरकारी संगठन / यह सारे गैर सरकारी संगठनों के प्रमुख करता धर्ता को लाभ ही लाभ हो रहा है / कई लोग तो ऐसे है जिन्होंने बचपन में साइकिल की सवारी भी नहीं की थी, घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से लेकिन आज कल वे वातानुकूलित कारों में चलते है और गैर सरकारी संगठन नामक कारखाने के मुखिया है /
बुंदेलखंड में सूदखोरी से होने वाली हत्याओं ( आत्म ह्त्या ) का ग्राफ भट्ठे की चिमनी के धूए की तरह हर महीना ऊपर उठता है / गरीबी का चरम यह है कि एक घर में दो से अधिक महिलाएं तो है, लेकिन घर में साड़ी एक ही है , जिसे बाहर निकालने वाली महिला पहनती है, घर के अंदर की महिलाए आधे - अधूरे वस्त्रों में अपने शरीर को किसी तरह तोपे ढांके बैठी रहती है / एक साथ यह महिलाएं घर से बाहर भी नहीं निकल सकती है /


Friday, July 23, 2010

सब्सिडी बता तू आती कहा से है /


क्या पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय आम भारतीय को यह भी बताएगी की हर सिलेंडर के पीछे दी जाने वाली रूपए २२४.३८ की सब्सिडी आती कहा से है ? सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही की बड़ी बातें कर रही है, एक तरफ महंगाई आम भारतीय की कमर तोड़ रही है, दूसरी तरफ सरकार गैस सिलेंडर पर सब्सिडी दे कर अपनी पीठ स्वयं ही थपथपाना चाहती है / सरकार मध्यम वर्ग को केंद्र में रखकर ही अपनी योजनाएं बनाती है, निम्न वर्ग चूकीं बिखरे और असंगठित है इसलिए वरीयता क्रम में नहीं आते है / आज भी लगभग ८० प्रतिशत ग्रामीण घरों में चूल्हा लकड़ी, और गोबर के कन्डो से जलते है / आदिवासी और पिछड़े क्षेत्र के लोग तो जानते ही नहीं है की क्या होता है गैस सिलेंडर ? लेकिन सरकार उनके हितों को नज़रंदाज करते हुए मध्यम वर्ग की रसोई के लिए सबसिदाईज्द गैस सिलेंडर दे रही है, जिसके वितरण व्यवस्था पर ढंग से लगाम भी नहीं लगा पा रही है / घरेलू गैस का व्यावसायिक इस्तेमाल कितना हो रहा है क्या हमारी सरकार यह बताएगी ? नहीं बताना है तो न बताए इस तरह के आधे अधूरे लोक लुभावन प्रचार करने से तो बाज आये /

Tuesday, July 20, 2010

मन

आज मन पता नहीं क्यों प्रफुल्लित है / मन को तो सदैव प्रफुल्लित रहना चाहिए / लेकिन मन को प्रफुल्लित रखने का कोई तय सूत्र नहीं है, ना ही किसी वैज्ञानिक ने शोधने की कोशिश की, हो सकता है किया भी हो लेकिन मेरी जानकारी में नहीं है / अगर सफल हुआ होता शोधने में तो शायद जानकारी में होती / अब सवाल फिर से आता है की मन को प्रफुल्लित कैसे रक्खे या मन कभी - कभी प्रफुल्लित क्यों रहता है ? आज मन क्यों नहीं लग रहा है किसी काम में ? मन चिंतित है व्यथित है और ना जाने क्या क्या /शरीर के किस हिस्से में मन होता है मन दिखने में कैसा है ? यह ठीक उसी तरह से है जैसे प्यार और दिल / हम दिल दे चुके सनम - सनम आपके दिल से कौन सा खेल खेलेंगे और आप बिना दिल के कहा मौज करोगे ? दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे सब के सब तो दिलवाले है, कौन है बिना दिल का जो दुलहनिया ले जाएगा / प्रफुल्लित मन लिए दिल दुलहनिया के चक्कर में मै कहा आ फसा, काफूर हो गया प्रफुल्लन सताने लगी दुनियावी चिंताये /

Friday, July 16, 2010

मेरा आवांछित जीवन साथी

मुझे एक अदद जीवन साथी मिल गया है / जीवन साथी जिसको तो मै चाहता था और ना ही मेरे परिवार वाले / बिलकुल आप्रत्याशित तरीके से मिला मुझे मेरा जीवन साथी / कोई दिन पहले की बात है, मै बैंग्काक के सेनाके विशेष चिकित्शालय में दाखिल हुआ अपने सर में लगातार दर्द के वजह से / दाखिल होते ही चिकित्सकों नेपहला सवाल पूछा की कभी पहले ऐसा हुआ था ? तो मुझे हांग काँग याद गया, मै वहा भी इन्ही कारणों सेअस्पताल में दाखिल हुआ था / मैंने सच - सच पूरा पुराना प्रकरण सूना दिया / आदेश मिला की चुम्बकीयअनुनादी चित्रण होगा आपके मस्तिष्क का / मै थोड़ा सहमा लेकिन अगले ही पल सचेत हुआ की, पहले भी तो होचुका है हांग काँग में, मैंने अपनी स्वीकृत देने में एक क्षण भी नहीं जाया किया / उसके बाद चौकने की बारी मेरीथी, हांग काँग में थक्के थे मेरे दिमाग में और यहाँ थक्के मिले अनुनादी विश्लेषण के बाद / संभालना खुद कोकठिन प्रतीत हुआ एक क्षण के लिए लेकिन संभाला मैंने खुद को / विशेषज्ञ चिकित्सक का आदेश हुआ की मैतत्काल भर्ती हो जाऊ, लेकिन मेरा दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य की अस्पताल में कोई बिस्तर खाली ही नहीं था / इसलिए आज मै यह सब लिख पा रहा हूँ / परन्तु चिकत्सक ने अस्पताल छोडने से पहले बता दिया की बिस्तरखाली होते ही हम आपको आपके दूरभाष पर सूचित करेंगे और आप बिना किसी विलम्ब के उपस्थित होंगे / मैंनेसप्रेम हां में अपना सिर हिला दिया / देखेंगे कल क्या होगा /
चिकित्सक ने बताया की हम आपकी शैल्याचिकित्षा नहीं कर सकते, यह बीमारी अब तो आपके जीवन भर रहेगीऔर आपको आजीवन दवा खानी पड़ेगी / मै सोच में पड़ गया की पुरूष तो केवल पत्नी के साथ जिंदगी भर जीवनजीने का व्रत लेता है / मेरे बगल में तो यह बीमारी खड़ी है ज़िंदगी भर के लिए / खैर क्या कर सकते है, मुबारक होमुझे मेरा यह जीवन साथी /
कैसे कहू
कैसे छुपाऊ
न कहू तो कैसे पचाऊ
पेट में आखिर सब बात पचती भी तो नहीं है
किया बहुत कोशिश
लेकिन अब हारता दिख रहा हूँ
कैसे चुप रहू
कह दू
चुप रहू
क्या समझेंगे लोग
कमजोर
दया दिखाएँगे
या फिर हँसेंगे
बेहतर होगा
चुप रहू
देखेंगे
करेंगे कोशिश
दम समेट कर
आखिरी बार


Thursday, July 8, 2010

यह कैसा आपातकाल ?


थाईलैंड के १९ मंडलों में आपातकाल पिछले महीने से लागू है, लेकिन यह आपातकाल कही पर नज़र नहीं आता है / कल शाम को यूँही मै बैंग्काक के खाउसन रोड पर जा पहुचा, खाउसन रोड विदेशी पर्यटकों का पसंदीदा जगह माना जाता है / यहाँ कल भी उतनी ही चहल पहल थी जितनी की महीना पहले या उससे पहले हुआ करती थी / आपातकाल को ठेंगा दिखाते हुए सारी दुकाने, मयखाने अपने पूरे अंदाज़ में पर्यटकों के लिए खुले हुए थे / सड़क परपूरी दुनिया के पर्यटक चहलकदमी कर रहे थे / मै एक रेस्तरां में बैठ कर अपने खिचड़ी हो रहे बालो पर उंगली फेरते हुए थाईलैंड, आपातकाल और खाउसन रोड पर खुद से ही परिचर्चा करने लगा / क्या देश है क्या कानून है ? हमारे यहाँ तो अगर धारा १४४ लागू हो जाती है तो बाज़ार और आम जन जीवन पर प्रभाव पडने लगता है, कर्फ्यू और आपातकाल में तो जन जीवन ठप ही हो जाता है / यहाँ आपातकाल में भी कोई समस्या नहीं है / और खाउसन रोड ही क्या पूरा बैंग्काक ऐसे ही अपने पुराने ढर्रे पर है / मई के महीने में बैंग्काक के एक दर्जन से अधिक व्यावसाईक इमारतों में आग लगा दी गयी थी एक हिंसक भीड़ के द्वारा / यह वीरान और भुतही सी जली हुई इमारते क्या सोचती होंगी ? इन्हें अपने जल जाने पर तरश भी आता होगा, और बाकी सारे शहर पर यह लानत भी देती होंगी, और शायद मन ही मन यह भी कहती होंगी की कभी हमभी जवान थे कभी हम भी हिस्सा थे इस शहर के /

"ज़िंदगी कभी पीछे मुड कर नहीं देखती है, कल को भुला कर आज में जीने लगती है"

बैंग्काक भी ऐसा ही है, बहुमंजिली बाज़ार के जल जाने के बाद फुटपाथ पर दुकाने खुल गयी / धंधा नहीं होगा तोज़िंदगी कैसे चलेगी, धन तो कमाना ही है कल तक वातानुकूलित बहुमंजिली इमारत में दूकान थी ,और आज टेंट के नीचे फुटपाथ पर / कुछ मंदा ही सही लेकिन धंधा शुरू हो गया / इसे जीवटता कहेंगे या समय के साथ समझौता, मै नहीं तय कर पा रहा हूँ /


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Tuesday, July 6, 2010

अंतिमसंस्कार के बहाने /

कल शाम को बैंग्काक के एक बुद्धिस्ट मंदिर में जाना हुआ / मेरे एक परिचित के पिताजी का देहांत हो गया था एकदिन पहले / मै कल जब जपैया नदी पार करके बुद्धिस्ट मंदिर पहुचा जहा पर एक बड़े से हाल के अंदर रंग बिरंगेपुष्पगुच्छों के मध्य एक सफेत ताबूत रक्खा हुआ है जिस पर सुनहरे रंग की नक्काशी की गयी है / हाल के एकतरफ चबूतरे पर बुद्धिस्ट मोंक बैठे हुई थे और बाकी हाल में कुर्सियों पर मृतक के रिश्तेदार और जान पहचानवाले बैठे थे / मैंने भी एक खाली कुर्सी को भर दिया और कौतूहल वश प्रार्थना सभा को देख रहा था जो सुनायी दे रहाथा वह समझ से परे था / मन को थाम कर बैठा हुआ था तभी एक और परिचित मेरी कुर्सी के बगल वाली कुर्सी परखुद को स्थापित करते हुए मुस्कुरा कर सबाती ख्राब बोले मैंने दबे मन से जवाब तो दिया लेकिन सोचने भी लगामृत आत्मा के प्रार्थना सभा में भी कोई इस तरह से मुस्कुराकर अभिवादन करता है / मैंने अपनी झेप मिटाने केलिए जब दूसरी दिशा में देखा तो पडोश वाला चित्र चहुओर नज़र आया / मैंने खुद को सामान्य करने की कोशिशकी और पड़ोसी से पूछ बैठा की अंतिमसंस्कार कब होगा ? जवाब एक क्षण के लिए चौका देने वाला मिला, एकहफ्ते के बाद होगा मैं दूसरा सवाल पूचता उसके पहले वे खुद ही बताने लगे की, हम बुद्धिस्ट लोगों में यह परम्परा हैकी शव को मंदिर में ,,या फिर दिन तक रखते है और रोज शाम को प्रार्थना होती है और मंदिर में ही रात्रिभोजहोता है / आठवे दिन यदि शनिवार नहीं है तो दिन के समय मृत देह को अग्नि को समर्पित कर देते है / प्रार्थना मेंशामिल होने वाले लोग या तो काले कपडे पहनते है या फिर सफ़ेद / दूसरे रंग के कपडे वर्जित होते है / मृत देह कोजलाने की व्यवस्था भी मंदिर के प्रांगण में ही होती है / पूर्व में जलाने के लिए लकडियों का इस्तेमाल होता थालेकिन आज कल विद्युत से यह अंतिम कार्यक्रम संपन्न होने लगा है / आने जाने वाले परिचित लोग मृतक केपरिवार को कुछ आर्थिंक सहायता भी करते है / बुद्धिस्म के बारे में हालांकि मेरा ज्ञान कमजोर है फिरभी जबभीमौक़ा मिलता है तो समझने की कोशिश करता हूँ / जिज्ञासू मन को रोका भी तो नहीं जा सकता है /

Friday, July 2, 2010

झमेला मेंटर का /

बहुत दिनों से मै समझ नहीं पा रहा था एक शब्द का सही सही मतलब, यह शब्द अंग्रेज़ी भाषा का 'मेंटर' है / कई संभ्रांत और विद्वान जनों से मिलना हुआ इन दिनों, सभी ने दिया तो ढेर सारा उपदेश लेकिन माना नहीं की उपदेश दिए है, छूटते ही कहा की आपकी तो अच्छी मेंटरिंग हो गयी / मैं भारी चिंता में पड़ गया की यह क्या मुसीबत है मेंटरिंग / दिया तो उपदेश अच्छा काम करने के लिए, उकसाया की वंचितों की लड़ाई से पीछे न हटू मैं यह मेंटरिंग बीच में कहा से आ गया / याद आया जब विश्वविद्द्यालय में पढ़ा करता था तो 'मेंटल' नामक एक शब्द का उपयोग कूट शब्द की तरह हम लोग किया करते थे, फला तो मेंटल है / मेंटल माने शहरी जीवन में रचा - बसा नहीं है गवईपन है उसके व्यक्तित्व में / मेंटल और मेंटर में कोई सम्बन्ध तो नहीं है, या मेंटर मेंटल जैसा अधिक समझदार लोगो के बीच का कोई कूट शब्द है / इसे मेंटर और मेंटल के झोलमझेल में काफी समय जाया हुआ / फिर ख़याल आया की इन्टरनेट के पास तो हर सवालों के जवाब बिल जाते है तो मैंने भी अपनी मुसीबत इन्टरनेट के हवाले कर दिया / इन्टरनेट ने जो जवाब दिया उसे मै पूर्ण रूप से समझ तो नहीं पाया लेकिन इतना समझ पाया की मेंटर का मतलब अंग्रेज़ी के शब्द काउंसलर से मेल खाता है, काउन्सलर जो की सलाह देता है / मामला और गंभीर होता दिखा इसलिए यहाँ आ बैठा और अब आप सब प्रबुद्ध ब्लागबाजो से मदद चाहता हूँ मेंटर को समझाने में / कृपया जल्दी मदद पहुचाइयेगा /