Friday, May 9, 2008

सुनी अनसुनी

क्या सुनी क्या अनसुनी,
क्या कही क्या अनकही,
सब कुछ तो आज वही और वैसा ही है जैसा कल था,
आज सुबह भी सूरज अपने ठीक वक़्त पर निकला था ,
फिर क्यों मन बेचैन था किसी अज्ञात खतरे के भय से?
क्यों पूरा दिन जेहन में समुद्री लहरें उठती रही?
सब कही अनकही है,
सब सुनी अनसुनी है,
कितना कहोगे कितना सुनोगे?
शाम होते ही सूरज को फिर से डूबना है,

प्रशांत

अश्रुधारा

यादों का कुछ न पूछो दोस्त,
कब पिघले हुए ग्लेशियर का निर्मल जल,
आँखों के रास्तें उतर आता है गालों के मैदान पर,
पता ही नहीं चलता, एकदम साश्वत व विशुद्ध,
क्यूंकि यही शायद मनुष्य होने की सीमाये है ।

प्रशांत

मित्र और मित्रघात

अजीब दुर्भाग्य है दुनिया का,
खोजकर्ताओ ने सब कुछ तो खोजा,
जीवन को सरल बनाने के लिए,
लेकिन एक चूक हुई भारी उनसे,
मित्रो को परखने वाला लिटमस पेपर बनाना भूल गए.
और यही चूक हमारे दार्शनिको ने भी की,
उन्होने भी ऐसा कोई फलसफा नहीं दिया,
की जिससे एक मित्र दूसरे मित्र से,
धोखा खाने से बच जाए .
प्रशांत

लानत ताज को

ताज महल, प्रेम का अद्भुत स्तंभ
सारी दुनिया यही जानती और मानती है,
लेकिन यह केवल प्यार का स्तंभ नहीं है,
यह गवाह है असुरक्छा का,
यह गवाह है एक मुसलमान के प्रेम का,
जिसने भारत में प्रेम किया,
यहाँ प्रेम वर्जना की वस्तु है,
शायद इसीलिए शाहजहाँ ने,
अपने प्रेम को दीर्घकालिक बनाने के लिए ताज का निर्माण कराया,
अजीब बात है मैं यह सब क्यों कह रहा हू,
जबकि सारी दुनिया जानती है.
लेकिन दुर्भाग्य इस प्रेम के प्रतीक का,
कोई प्रेमी नहीं खाता कसम ताज की
क्यों खाते है प्रेमी कसमे लैला और मजनू की
हीर और रांझा की ?
यह महज विडम्बना नहीं है,
यह है एक राष्ट्र की मानसिकता,
हिन्दू राष्ट्र की मानसिकता,
पुरुष प्रधानता की मानसिकता,
अकबर महान ने प्रेम किया जोधा बाई से,
लेकिन नहीं बनवाया कोई ताज महल,
शुरू किया दीने इलाही,
जहाँ पर लोग स्वतंत्र हो अपनी स्वतंत्रता व पसंद के साथ,
क्यों रह गयी यह कहानी अधूरी?
क्यों आज भी प्रेम वर्जना की वस्तु है,
एक सेकुलर स्टेट में?

प्रशांत