२४ सितम्बर , इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला , दंगा होने के पूर्ण आसार , पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगतार शांति व्यवस्था बनाए रखने के इंतज़ाम में जुटे हुए है , सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोग शांति बनाए रखने के लिए लगे हुए है /
पिछले एक महीने से यह सब पढ़ - पढ़ कर मै तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि दरअसल कौन क्या कर रहा है और कौन क्या करना चाहता है / यह सब हव्वा क्यों खड़ा किया जा रहा है कि २४ सितम्बर के फैसले के बाद हिंसा होना एक तय सी बात है ? ऐसा लग रहा है एक पूर्वनियोजित हिंसा को जायज ठहराए जाने कि मुहीम में सब लोग लगे हुए है / क्या भारत के हिंदू और मुसलमान भाइयों को देश और देश की न्याय व्यवस्था पर तनिक भी विश्वास नहीं है / या फिर हमारे प्रशाशनिक अधिकारियों को हम भारतीयों पर तनिक भी विश्वास नहीं है / मुझे तो कम से कम यही समझ में आ रहा है कि कुछ मौकापरस्त हिंदू और मुसलमान इस फैसले की घटना को अपने राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अमादा है / जिससे बचने का एक सीधा और सरल सा तरीका है कि उन्हें उनके ही घरों में कुछ दिनों के लिए नज़रबंद कर देना चाहिए और देश के बाकी नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए / भारत के ३० प्रतिशत लोग रोज कमाते है और रोज खाते है एक दिन अगर यह न कमा पाए तो खाली पेट सोने को मजबूर होते है / धारा १४४ , तमाम पुलिस बलों को जहां तहां सुरक्षा के नाम पर प्रतिनियुक्त कर देने से करोणों लोगों को उनकी दिन प्रतिदिन की मजदूरी से वंचित कर सकती है, कर रही है / हमारी सरकार के पास संभावित दंगो से निपटने के लिए तमाम तरह के बल मौजूद है जिन्हें सरकार बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह जहा तहा उगा करके स्थिति को नियंत्रण में रखने का स्वांग कर रही है / हमारी सरकार ने और अधिकारियों ने उन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किये है जो कि सुरक्षा व्यवस्था या धारा १४४ की वजह से अपनी दिन प्रतिदिन की रोटी नहीं कमा पायेंगे और भूखे पेट सोना पड़ेगा परिवार सहित / भूखे व्यक्ति को बरगलाने से रोकने के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये है ? इन्हें रोटी कैसे मिलेगी यह कौन तय करेगा और कौन जिम्मेदार है इनके भूखे पेट का ? कही यह साजिश तो नहीं है कि मंदिर - मस्जिद और संभावित दंगो की आंड में इन गरीबों से बेसहारों से निजात पा लेने की ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कैसे लोग आ गए है जिन्हें भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है जिन्हें भारत के भूखे लोगों का ख़याल नहीं है ? हमें ऐसी सुरक्षा नहीं चाहिए जिससे किसी की रोटी छिनती हो हमें कोई मंदिर या मस्जिद नहीं चाहिए हमें हमारे भोजन के अधिकार और भय रहित जीवन जीने का अधिकार चाहिए / हम संगीनों में जीने के नहीं आदी हमें संगीनों से डर लगता है, संगीनें मेरी रोटी छीनती है, संगीनें मेरी आज़ादी छीनती है / मुझे मेरे हाल पर छोडो मुझे अपने भाई बंधुओं से नहीं खतरा, हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /
पिछले एक महीने से यह सब पढ़ - पढ़ कर मै तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि दरअसल कौन क्या कर रहा है और कौन क्या करना चाहता है / यह सब हव्वा क्यों खड़ा किया जा रहा है कि २४ सितम्बर के फैसले के बाद हिंसा होना एक तय सी बात है ? ऐसा लग रहा है एक पूर्वनियोजित हिंसा को जायज ठहराए जाने कि मुहीम में सब लोग लगे हुए है / क्या भारत के हिंदू और मुसलमान भाइयों को देश और देश की न्याय व्यवस्था पर तनिक भी विश्वास नहीं है / या फिर हमारे प्रशाशनिक अधिकारियों को हम भारतीयों पर तनिक भी विश्वास नहीं है / मुझे तो कम से कम यही समझ में आ रहा है कि कुछ मौकापरस्त हिंदू और मुसलमान इस फैसले की घटना को अपने राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अमादा है / जिससे बचने का एक सीधा और सरल सा तरीका है कि उन्हें उनके ही घरों में कुछ दिनों के लिए नज़रबंद कर देना चाहिए और देश के बाकी नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए / भारत के ३० प्रतिशत लोग रोज कमाते है और रोज खाते है एक दिन अगर यह न कमा पाए तो खाली पेट सोने को मजबूर होते है / धारा १४४ , तमाम पुलिस बलों को जहां तहां सुरक्षा के नाम पर प्रतिनियुक्त कर देने से करोणों लोगों को उनकी दिन प्रतिदिन की मजदूरी से वंचित कर सकती है, कर रही है / हमारी सरकार के पास संभावित दंगो से निपटने के लिए तमाम तरह के बल मौजूद है जिन्हें सरकार बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह जहा तहा उगा करके स्थिति को नियंत्रण में रखने का स्वांग कर रही है / हमारी सरकार ने और अधिकारियों ने उन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम किये है जो कि सुरक्षा व्यवस्था या धारा १४४ की वजह से अपनी दिन प्रतिदिन की रोटी नहीं कमा पायेंगे और भूखे पेट सोना पड़ेगा परिवार सहित / भूखे व्यक्ति को बरगलाने से रोकने के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये है ? इन्हें रोटी कैसे मिलेगी यह कौन तय करेगा और कौन जिम्मेदार है इनके भूखे पेट का ? कही यह साजिश तो नहीं है कि मंदिर - मस्जिद और संभावित दंगो की आंड में इन गरीबों से बेसहारों से निजात पा लेने की ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कैसे लोग आ गए है जिन्हें भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है जिन्हें भारत के भूखे लोगों का ख़याल नहीं है ? हमें ऐसी सुरक्षा नहीं चाहिए जिससे किसी की रोटी छिनती हो हमें कोई मंदिर या मस्जिद नहीं चाहिए हमें हमारे भोजन के अधिकार और भय रहित जीवन जीने का अधिकार चाहिए / हम संगीनों में जीने के नहीं आदी हमें संगीनों से डर लगता है, संगीनें मेरी रोटी छीनती है, संगीनें मेरी आज़ादी छीनती है / मुझे मेरे हाल पर छोडो मुझे अपने भाई बंधुओं से नहीं खतरा, हमें खतरा है तुम्हारी साजिशों से /
4 comments:
सही है प्रशांत..
चुकीं लडवाना सिस्टम के हक में है... इसलिए इसको फैसले को इतनी हवा क्यों दी जा रही है..
ऐसे मुद्दे जनता को बिजी रखते है.. और आधारभूत सवालों से भटकाए रखते है..
एकदम ही ठीक कहा है हमें खतरा अपने भाई-बंधुओं से नहीं बल्कि होने वाली साजिशों से है
http://veenakesur.blogspot.com/
एकदम ही ठीक कहा है हमें खतरा अपने भाई-बंधुओं से नहीं बल्कि होने वाली साजिशों से है
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ye trasdi hai hamare woqt ki
jo teergi ban dhansi sakht si !
khauf ke jitne siyaah saaye hein
saare sadkon pe utar aaye hein !
dharm ke khanjar liye aankhon mein
khauf ka flagmarch jari hai !
sukun basta rahaa kal tak jahaa
ik baichen halchal si vahan taari hai !
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