Tuesday, March 10, 2009

ज़िन्दगी को समझने की ज़द्दोज़हद में !

हमारे लब उन लोगो ने सी रक्खे हैं
जिन्हें हम अपना कहा करते हैं
दोष मेरा था या था उनका जुल्म
इसी मुगालते में अपने हाथ पैर भी चला सके
कुछ दोस्तों ने कहा
की यह दस्तूरे समाज है
कुछ ने कहा यह पुरूष प्रधान समाज का नियम है
लेकिन मुझे समझ में आया
की यह मेरी कमजोरी और कमअक्ली थी
जिसने दुश्मनों को पहचाना नही
या पहचान कर भी चुप रहने के लिए मजबूर रक्खा
अब ख़ुद से ख़ुद को आज़ाद कराने की जद्दोजहद में
ज़िन्दगी जिए या ज़ंग लड़े
कठिन हो गया है
यह तय करना भी

3 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

हमारे लब उन लोगो ने सी रक्खे हैं
जिन्हें हम अपना कहा करते हैं

Bhgat ji,

bhot acchi suruaat hai...mehnnat jarur nikhar layegi ...ummid hai agli bar ek behtreen nazam padhne ko milegi....shukriya...!!

sandhyagupta said...

Achchi lagi aapki rachna.Badhai.

daanish said...

अब ख़ुद से ख़ुद को आज़ाद कराने की जद्दोजहद में
ज़िन्दगी जिए या ज़ंग लड़े
कठिन हो गया है
यह तय करना भी ।

zindgi ki kash.m.kash ko
bahut achhe alfaaz mei baandha hai aapne.....badhaaee.
---MUFLIS---