क्या सुनी क्या अनसुनी,
क्या कही क्या अनकही,
सब कुछ तो आज वही और वैसा ही है जैसा कल था,
आज सुबह भी सूरज अपने ठीक वक़्त पर निकला था ,
फिर क्यों मन बेचैन था किसी अज्ञात खतरे के भय से?
क्यों पूरा दिन जेहन में समुद्री लहरें उठती रही?
सब कही अनकही है,
सब सुनी अनसुनी है,
कितना कहोगे कितना सुनोगे?
शाम होते ही सूरज को फिर से डूबना है,
प्रशांत
1 comment:
फिर क्यों मन बेचैन था किसी अज्ञात खतरे के भय से?
क्यों पूरा दिन जेहन में समुद्री लहरें उठती रही?
सब कही अनकही है,
सब सुनी अनसुनी है,
कितना कहोगे कितना सुनोगे?
शाम होते ही सूरज को फिर से डूबना है,
Bhot sunder rachna...!!
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