Sunday, April 26, 2009

मेरी आकांछा .

ज़िन्दगी से जंग जारी है
बिना किसी शिकवा शिकायत के
जियें जा रहा हूँ
इस उम्मीद से
की कुछ पद चिह्न छोड़ सकूं
पद चिह्न ज़िन्दगी के साथ संघर्ष का
पद चिह्न आज की हकीकत का
जो कल लोगो को कहानियाँ सुनाये
जो आज बीत रही है
जिससे लोगो की चेतना में बदलाव आए
यह कोई संघर्ष गाथा नही होगी
यह कहानी होगी
एक आम आदमी की ज़िन्दगी की
जिसे उसने जिया ज़द्दोज़हद में

प्रशांत भगत

3 comments:

MAYUR said...

अच्छा लिखा है आपने और सत्य भी , शानदार लेखन के लिए धन्यवाद ।

मयूर दुबे
अपनी अपनी डगर

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

mukti said...

its a nice poem prashant. keep blogging.