जो देखा मैंने, जो सोचा मैंने, जिया जिसको मैंने वही यहाँ बाटना चाहता हूँ आपसे -
Friday, May 9, 2008
अश्रुधारा
यादों का कुछ न पूछो दोस्त, कब पिघले हुए ग्लेशियर का निर्मल जल, आँखों के रास्तें उतर आता है गालों के मैदान पर, पता ही नहीं चलता, एकदम साश्वत व विशुद्ध, क्यूंकि यही शायद मनुष्य होने की सीमाये है ।
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