Tuesday, July 6, 2010

अंतिमसंस्कार के बहाने /

कल शाम को बैंग्काक के एक बुद्धिस्ट मंदिर में जाना हुआ / मेरे एक परिचित के पिताजी का देहांत हो गया था एकदिन पहले / मै कल जब जपैया नदी पार करके बुद्धिस्ट मंदिर पहुचा जहा पर एक बड़े से हाल के अंदर रंग बिरंगेपुष्पगुच्छों के मध्य एक सफेत ताबूत रक्खा हुआ है जिस पर सुनहरे रंग की नक्काशी की गयी है / हाल के एकतरफ चबूतरे पर बुद्धिस्ट मोंक बैठे हुई थे और बाकी हाल में कुर्सियों पर मृतक के रिश्तेदार और जान पहचानवाले बैठे थे / मैंने भी एक खाली कुर्सी को भर दिया और कौतूहल वश प्रार्थना सभा को देख रहा था जो सुनायी दे रहाथा वह समझ से परे था / मन को थाम कर बैठा हुआ था तभी एक और परिचित मेरी कुर्सी के बगल वाली कुर्सी परखुद को स्थापित करते हुए मुस्कुरा कर सबाती ख्राब बोले मैंने दबे मन से जवाब तो दिया लेकिन सोचने भी लगामृत आत्मा के प्रार्थना सभा में भी कोई इस तरह से मुस्कुराकर अभिवादन करता है / मैंने अपनी झेप मिटाने केलिए जब दूसरी दिशा में देखा तो पडोश वाला चित्र चहुओर नज़र आया / मैंने खुद को सामान्य करने की कोशिशकी और पड़ोसी से पूछ बैठा की अंतिमसंस्कार कब होगा ? जवाब एक क्षण के लिए चौका देने वाला मिला, एकहफ्ते के बाद होगा मैं दूसरा सवाल पूचता उसके पहले वे खुद ही बताने लगे की, हम बुद्धिस्ट लोगों में यह परम्परा हैकी शव को मंदिर में ,,या फिर दिन तक रखते है और रोज शाम को प्रार्थना होती है और मंदिर में ही रात्रिभोजहोता है / आठवे दिन यदि शनिवार नहीं है तो दिन के समय मृत देह को अग्नि को समर्पित कर देते है / प्रार्थना मेंशामिल होने वाले लोग या तो काले कपडे पहनते है या फिर सफ़ेद / दूसरे रंग के कपडे वर्जित होते है / मृत देह कोजलाने की व्यवस्था भी मंदिर के प्रांगण में ही होती है / पूर्व में जलाने के लिए लकडियों का इस्तेमाल होता थालेकिन आज कल विद्युत से यह अंतिम कार्यक्रम संपन्न होने लगा है / आने जाने वाले परिचित लोग मृतक केपरिवार को कुछ आर्थिंक सहायता भी करते है / बुद्धिस्म के बारे में हालांकि मेरा ज्ञान कमजोर है फिरभी जबभीमौक़ा मिलता है तो समझने की कोशिश करता हूँ / जिज्ञासू मन को रोका भी तो नहीं जा सकता है /

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